हेलो दोस्तों नमस्कार इस ब्लॉग में मैने Kaizen और MUDA के बारे में लिखा है उम्मीद करता हु आपको अच्छा और हेल्पफुल लगेगा
काइजन एक जापानीज शब्द है ये दो शब्दों से मिलकर बना है
KAI + ZEN = Kaizen
काई का मतलब बदलाव और जेन का मतलब गुड यानि की
ऐसा कोई भी बदलाव जिससे कुछ अच्छा हो या इम्प्रूवमेंट हो kaizen कहलाता है
काइजन के द्वारा सब मिल के छोटे छोटे
इम्प्रूवमेंट करते रहते है जिससे की प्रोडक्टिविटी इम्प्रूव होती है और waste में
कमी आती है |
“Kaizen is small
incremental changes made for improving productivity and minimizing waste”
काइजन के जनक Mr. Masaaki Imai है | इनका कहना
था की काइजन सबके द्वारा (everyone), हर दिन (every day) और हर जगह (every where) करना
चाहए |
kaizen is everyone, every day, every where
इसका मतलब की कंपनी में काम करने वाले हर कर्मचारी चाहे वो मेनेजर हो या वर्कर सबको हर दिन अपने एरिया में कुछ न कुछ छोटे छोटे इम्प्रूवमेंट करते रहना चाहए इससे कंपनी में waste कम होगा और कंपनी आगे बढ़ेगी |
मुदा एक जापानीज शब्द है इसका मतलब है waste
यानि की बेकार | किसी भी आर्गेनाइजेशन की वो एक्टिविटी जो प्रोडक्ट या सर्विस में
वैल्यू ऐड नहीं करती है उसमे सिर्फ खर्चा (cost) लगता है उसे मुदा (waste) कहते है
|
ये एक्टिविटी क्या होती है ऐसे इसे समझते है…
वैल्यू एडेड एक्टिविटी: -
किसी प्रोडक्ट को बनाने में ऐसी एक्टिविटी जो प्रोडक्ट के वैल्यू को बढाती है उसे वैल्यू एडेड एक्टिविटी कहते है | जैसे की मशीनिंग, वेल्डिंग, स्टम्पिंग, हीट ट्रीटमेंट आदि |
नॉन वैल्यू एडेड एक्टिविटी: -
ऐसी एक्टिविटी
जिससे हमारे प्रोडक्ट या सर्विस में कोई वैल्यू ऐड नहीं होती है, जिससे सिर्फ समय
और खर्चा लगता है नॉन वैल्यू एडेड एक्टिविटी कहते है | इसमें भी दो प्रकार होते है
............
टाइप 1 (जरुरी नॉन वैल्यू एडेड एक्टिविटी): -
ऐसी
एक्टिविटी जो हमारे प्रोडक्ट या सर्विस में कोई वैल्यू ऐड नहीं करती है लेकिन वो
एक्टिविटी जरुरी भी है | जैसे की प्रोडक्ट का इंस्पेक्शन इससे प्रोडक्ट में कोई
वैल्यू ऐड नहीं होता है लेकिन इंस्पेक्शन जरुरी भी है जिससे की कस्टमर को
डिफेक्टिव पार्ट्स न पहुच जाये |
टाइप 2 (मुदा): -
ऐसी एक्टिविटी जो प्रोडक्ट या
सर्विस में कोई वैल्यूज ऐड नहीं करती है और वो जरुरी भी नहीं है असल में मुदा (waste)
यही है “pure waste” |
किसी भी एवरेज कंपनी 95% एक्टिविटी नॉन वैल्यू एडेड एक्टिविटी होती है केवल 55 एक्टिविटी ही प्रोडक्ट या सर्विस में वैल्यू ऐड करती है |
ये निम्नलिखित है, इसको आसानी से यद् करने के लिए सॉर्ट में “TIMWOOD” कहते है |
इन waste को तीन कैटोगरी में बाँट सकते है.....
कोई भी ट्रांसपोटेसन जो कंपनी
में हो रहा है चाहे वो प्रोडक्ट का ट्रांसपोटेसन, फाइल का ट्रांसपोटेसन, मेल का
ट्रांसपोटेसन, मटेरियल का ट्रांसपोटेसन, वो एक नॉन वैल्यू एडेड एक्टिविटी है जो की
एक waste है |
एक और उदाहरण से समझते है जैसे की कोई मटेरियल एक
जगह से दूसरी जगह फोर्क लिफ्ट से मूवमेंट कर रहा है, मटेरियल का मूवमेंट एक जगह से
दूसरी जगह जरुरी हो सकता है लेकिन इससे हमारे प्रोडक्ट में कोई वैल्यू ऐड नहीं
होती है |
इस मुदा से बहुत सारे नुकसान होते है जैसे की
साइकिल टाइम बढ़ता है, कोस्ट बढती है और हमारे जो भी रिसोर्स ट्रांसपोटेसन में
प्रयोग होता है वो ब्लाक हो जाता है | इसलिए हमें गैर जरुरी ट्रांसपोटेसन से बचना
चाहए और उसे कम करना चाहिए |
किसी भी तरह का इन्वेंटरी जैसे की वर्क इन
प्रोग्रेस (WIP) फिनिश्ड गुडस (FG), रॉ मटेरियल (RM), Consumable मटेरियल, ये सब एक तरह के waste है, इन्वेंटरी मतलब
मनी ब्लॉक (Money Block)
इसके बहुत सारे नुकसान है: -
इसलिए कंपनी में कोशिश करना चाहए की कम से कम
इन्वेंटरी को रखे |
किसी भी तरह का ऑपरेटर/वर्कर का मूवमेंट, अननेस्सरी मूवमेंट मन जाता है ऑपरेटर या वैल्यू ऐडर का जितना ज्यादा मूवमेंट होगा उसे उतना ज्यादा साइकिल टाइम बढेगा और प्रोडक्टिविटी लोस होगी, जैसे की मटेरियल के लिए एक स्टेशन से दुसरे स्टेशन तक जाना, प्रोसेस के दौरान टूल उठाने के लिए बार बार मूव करना, इन-प्रोसेस इंस्पेक्शन के प्रोसेस के दौरान बार बार स्टेशन टेबल तक जा के चेक करना आदि |
इंडस्ट्रियल स्टडी में में ये माना गया है की 15
डिग्री से हाथ या सर का मूवमेंट waste मन जाता है | लेकिन एक्चुअल में ये तो संभव
है नहीं लेकिन कोसिस होनी चाहए की ये मूवमेंट कम से कम हो इससे साइकिल टाइम और
कोस्ट रिडक्शन में हेल्प होगी |
आर्गेनाइजेशन के सिस्टम में
किसी भी चीज का वेटिंग एक waste है जैसे की मशीन होल्ड है क्युकी रॉ-मटेरियल नहीं
है, रॉ-मटेरियल होल्ड है क्युकी मशीन ब्रेक डाउन है, पार्ट्स आगे के प्रोसेस के
लिए वेट कार रहा है क्युकी उस प्रोसेस का साइकिल टाइम जयादा है | हमें इन सब
वेटिंग waste को पता करना है और इनको कम करना चाहए |
इनकी वजह से Bottle – Neck प्रोसेस बढ़ जायेंगे, साइकिल
टाइम बढेगा, कस्टमर का रिस्पांस में देरी होगी और प्लांट में WIP (Work in Progress) प्रोडक्ट क इन्वेंटरी बढ़ेगी |
ओवर प्रोडक्शन सबसे बड़ा
waste है क्युकी इसकी वजह से और भी बहुत सारे waste बनते है जैसे की डिमांड से
जयादा प्रोडक्शन की वजह से इन्वेंटरी बढ़ेगी, इन्वेंटरी बढ़ेगी तो उसका रखरखाव का
खर्चा बढेगा, ट्रांसपोटेसन बढेगा, इसीलिए इसको सबसे बड़ा waste माना गया है |
इसके बहुत सारे इम्पैक्ट भी है जैसे की, ओवर
प्रोडक्शन की वजह से फ्लोर का स्पेस कवर करेगा, इसकी वजह से और भी सारी प्रॉब्लम
और waste छुप जायेंगी (जैसे की डिफेक्टिव क्वालिटी का प्रोडक्ट, ख़राब डिलीवरी) और
अनवांटेड इन्वेंटरी बढ़ेगी | तो हमें जितना कस्टमर से डिमांड हो उतना ही प्रोडक्शन
करना चाहिए |
प्रोडक्ट या सर्विस को
निर्धारित प्रोसेस के अलावा कोई प्रोसेस करना ओवर प्रोसेसिंग कहलाता है | जैसे की इंस्पेक्शन
किये हुए पार्ट का दुबारा इंस्पेक्शन, क्लीन पार्ट्स का दुबारा क्लीनिंग, शार्प एज
रेमोविंग, rework करना आदि |
इसके वजह से प्रोसेस में डिले टाइम बढेगा, डिफेक्टइव
पार्ट्स बनने के ज्यादा सम्भावना रहेगी | इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए की जो भी
एक्स्ट्रा प्रोसेस कर रहे है उसे कम से कम करे |
किसी भी तरह का रिजेक्शन, rework
एक बहुत बड़ा waste है | ये रिजेक्शन कई कारणों से होते है जैसे की.....
डिफेक्ट की वजह से कंपनी का रिसोर्स कन्जूम
होगा, कस्टमर को टाइम पे डिलीवरी नहीं हो पायेगी, कस्टमर कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विस
से असंतुष्ट होगा, कम्पनी के खर्चे बढ़ेंगे | डिफेक्ट एक बहुत बड़ा waste है इसीलिए
इसको कम से से कम करना चाहिए |
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