हेल्लो दोस्तों आईये आज COQ के बारे में जानते
है
COQ मतलब ....... कोस्ट ऑफ़ क्वालिटी (Cost
Of Quality) है !
क्वालिटी के एक बहुत ही प्रसिद्ध गुरु हुआ करते
थे जिनका नाम जोसेफ म. जुरान था | उनका कहना था की कंपनी के मेनेजर और वर्कर जनरल
चीजों के बारे में बात करते है जैसे की प्रोडक्ट की क्वालिटी, प्रोडक्टिविटी, मशीनों
का ब्रेक डाउन, रिजेक्शन पीपीएम आदि |
लेकिन जो कंपनी के सीनियर मेनेजर या मैनेजमेंट टीम होती है वो पैसे की भाषा में बात करती है | किसी भी नुकसान को पैसे में कन्वर्ट करते है तो उस नुकसान का देखने का नजरिया ही बदल जाता है | जैसे की हम एक उदाहरण से समझते है मान लीजिये आपकी मशीन पे 2 घंटे का ब्रेकडाउन है | अब इस 2 घंटे ब्रेक डाउन की वजह से कंपनी को पैसे के रूप में कितना नुकसान हुआ अगर उसका आकलन करते है तो ये बहुत जयादा होगा और ये आपको और बेहतर करने के लिए प्रेरित करेगा | एक और उदाहरण से समझाते है जैसे की आपकी कंपनी का रिजेक्शन 2% (PPM 20000) है | अभी इसको देख के लग रहा है की बस 2% ही रिजेक्शन है लेकिन अब इसी 2% रिजेक्टेड प्रोडक्ट को पैसे में कन्वर्ट करे | मतलब की अगर ये 2% पार्ट्स ओके होते तो कितने की सेल होती | तो आप देख्नेगे की कंपनी का तो लाखो का प्रोडक्ट हम रिजेक्शन कर दे रहे है |
Cost of Poor Quality kya hai |
यह वह नुकसान होता है जिससे कंपनी को डायरेक्ट
या इन-डायरेक्ट तरीके से पैसे का नुकसान होता है इसको निचे उदाहरण से समझते है ....
कस्टमर को हमारे द्वारा भेजे जा रहे प्रोडक्ट की वजह से प्रॉब्लम फेस करना पड रहा है चाहे वो प्रोडक्ट का टाइम से डिलीवर न होना या प्रोडक्ट में क्वालिटी प्रॉब्लम | जिसकी वजह से वो हमारे प्रोडक्ट का डिमांड क्वांटिटी कम कर देता है | इससे कंपनी को जो बिज़नेस नुकसान हुआ उसे डायरेक्ट कोस्ट ऑफ़ लोस्ट opportunities कहते है |
लगातार ख़राब डिलीवरी और प्रोडक्ट की क्वालिटी की वजह मौजूदा कस्टमर आगे का नया बिज़नेस हमें देने की वजाय किसी और को दे देता है, और इन सब की वजह से मार्किट में कंपनी का नाम ख़राब होता है जिससे जो नए कस्टमर जुड़ने वाले होते है उनको हमारे खराब क्वालिटी का पता चलता है तो वो नहीं जुड़ पाते है और नए बिज़नेस आर्डर नहीं देते है | इस तरह के नुकसान को इन-डायरेक्ट कोस्ट ऑफ़ लॉस्ट opportunities कहते है
प्रिवेंशन कोस्ट, प्रिवेंशन का अर्थ होता है की किसी भी गलती को होने से बचाना | प्रिवेंशन कोस्ट वो कोस्ट है जो हम अप्प्रैसल (इंस्पेक्शन) और फेलियर को कम करने के लिए इन्वेस्टमेंट (खर्चा) करते है उसे प्रिवेंशन कोस्ट कहते है |
"prevention costs are the cost of those activities specifically designed to prevent poor quality product or service"
प्रिवेंशन कोस्ट के अंदर क्या – क्या आता है?
निचे लिखी गयी एक्टिविटी में जो भी खर्चा लगता है वो प्रिवेंशन कोस्ट के अंदर आता है -
मार्किट रिसर्च - अपने प्रोडक्ट के बारे में जानने के लिए और फीडबैक लेने के लिए मार्किट रिसर्च करने में लगा खर्चा |
क्वालिटी ट्रेनिंग प्रोग्राम – प्रोडक्ट से रिलेटेड अपने कर्मचारी के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम करवाने का खर्चा |
कॉन्ट्रैक्ट रिव्यु – अपने सप्लायर और कस्टमर के साथ कॉन्ट्रैक्ट रिव्यु में लगा खर्चा |
डिजाईन रिव्यु – अपने प्रोडक्ट का डिजाईन रिव्यु में लगा खर्चा |
फील्ड ट्रायल – अपने प्रोडक्ट की क्वालिटी जानने के लिए फील्ड ट्रायल करने में लगा खर्चा |
सप्लायर इवैल्यूएशन – नये सप्लायर के इवैल्यूएशन में लगा खर्चा |
प्रोसेस प्लान रिव्यु – प्रोडक्ट बनाने के जो प्रोसेस बनाया है उसके रिव्यु में लगा खर्चा |
प्रोसेस कैपाबिलिटी रिव्यु – प्रोसेस की कैपबिलिटी रिव्यु में लगा खर्चा |
डिजाईन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ़ जिग्स एंड फिक्सचर (Jigs & Fixtures) – प्रोडक्ट बनाने के लिए जिग्स और फिक्सचर की जरुरत पड़ती है | उसके डिजाईन और मैन्युफैक्चरिंग में लगा खर्चा |
अप्प्रैसल (इंस्पेक्शन) – इसका मतलब निरिछण या परखना होता है | इसमें हम अपने प्रोडक्ट या सर्विस की क्वालिटी को जानने के लिए जो भी अप्प्रैसल (इंस्पेक्शन) करते है जिससे की हमें पता लगता है की हमारा प्रोडक्ट या सर्विस कैसा परफॉर्म कर रहा है | इस प्रकिया में जो भी कोस्ट लगती है उसे अप्प्रैसल कोस्ट कहते है |
“Appraisal costs are spent to detect defects to assure conformance to quality standards. Appraisal cost activities sums up to the “cost of checking if things are correct” the appraisal costs are focused on the discovery of defects rather than prevention of defects”
निचे लिखी गयी एक्टिविटी में जो भी खर्चा लगता है वो प्रिवेंशन कोस्ट के अंदर आता है -
प्रोटो टाइप टेस्टिंग (Proto type testing) : - नए प्रोडक्ट के डेवलपमेंट के टाइम जो प्रोटो टाइप सैंपल बनाते है और उनकी टेस्टिंग करते है तो जो भी खर्चा आता है वो अप्प्रैसल (इंस्पेक्शन) कोस्ट के अंदर आता है
सप्लायर ऑडिट (Supplier Audit): - हमारे जो भी सप्लायर होते है उनका समय समय पे ऑडिट (Surveillance Audit) भी करते रहते है जिससे की उससे के द्वारा सप्लाई किये जा रहे पार्ट्स की गुणवत्ता बनी रहे | इस ऑडिट को करने में जो भी खर्चा लगता है वो अप्प्रैसल (इंस्पेक्शन) कोस्ट के अंदर आता है |
इनकमिंग मटेरियल इंस्पेक्शन (Incoming Material Inspection) : - सप्लायर से आये हुए मटेरियल का इन – कमिंग इंस्पेक्शन कोस्ट |
प्रोसेस इंस्पेक्शन/कण्ट्रोल (Process Inspection/Control): - मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में प्रोडक्ट की क्वालिटी को बनाये रखने के लिए जो इंस्पेक्शन करते है उसकी कोस्ट |
फाइनल इंस्पेक्शन (Final Inspection): - प्रोडक्ट के फाइनल इंस्पेक्शन में लगने वाली कोस्ट |
लेबोरेटरी टेस्टिंग और मेज़रमेंट (Laboratory testing and measurement ) :- प्रोडक्ट की लेबोरेटरी टेस्टिंग और मेज़रमेंट लगने वाली कोस्ट |
हमारे प्रोडक्ट और सर्विस का
फेलियर जो प्लांट में नहीं डिटेक्ट कर पाए और हमारे कस्टमर के यहाँ मिलती है और उनको
पता चल जाता है | यानि की हमारा प्रोडक्ट या सर्विस कस्टमर के यहाँ फेल हो जाता है
| कस्टमर की क्वालिटी स्टैण्डर्ड के हिसाब से उसे प्रोडक्ट या सर्विस नहीं मिली इस
तरह के फेलियर को एक्सटर्नल फेलियर कहते
है | इस फेलियर में जो भी खर्चा या नुकसान होता है वो एक्सटर्नल फैलियर कोस्ट के
अंतर्गत आता है | इसमें निम्नलिखित मुख्य हिस्से होते है .......
“External failure costs occur when the product or service from a process fails to reach designated quality standards and is not detected until after transfer to the customer”
कस्टमर कंप्लेंट का एनालिसिस (Processing/investigation of customer complaint):
- प्रोडक्ट या सर्विस में जब कोई प्रोब्लम कस्टमर
के यहाँ मिलती है या कस्टमर को पता चलता है तो कस्टमर क्वालिटी कंप्लेंट रेज करता
है | जिसको बंद करने के लिए कई तरह के खर्चे लगते है जैसे की प्रोब्लम को देखने और
समझने के लिए कस्टमर के यहाँ आने जाने खर्च प्रोब्लम के कारणों को पता लगा के उसके
लिए जो काम निर्धारित होता है उसको करने में जो इन्वेस्टमेंट लगता है वो खर्चे आदि
|
सेल प्रोडक्ट का रिपेयर या बदलना (Repair/Replacement of sold goods products): - जब कस्टमर के यहाँ प्रोडक्ट
में प्रोब्लम मिलती है तो उस प्रोडक्ट का या तो रिपेयर होता है या तो उसको बदल के दूसरा
प्रोडक्ट दिया जाता है | इस प्रक्रिया में जो खर्चे होते है वो एक्सटर्नल फेलियर
कोस्ट कहलाता है
वार्रेंटी क्लेम (Warranty Claims): - प्रोडक्ट या सर्विस में जब
कोई प्रोब्लम मार्किट में मिलती है तो कस्टमर वार्रेंटी क्लेम रेज करता है | ऐसी
स्थिति में पार्ट्स को रिपेयर या रिप्लेसमेंट करने में जो खर्चा आता है वो
एक्सटर्नल फेलियर कोस्ट कहलाता है |
पेमेंट में देरी की वजह से ब्याज (Interest charges on delayed payment due to
quality problems): - जब किसी प्रोडक्ट बैच में प्रोब्लम
आ जाती है तो वो पूरा बैच होल्ड हो जाता है जिसकी वजह से उसका कस्टमर उसका पेमेंट
भी होल्ड कर देता है जिसकी वजह से लिए गए लोन में एक्स्ट्रा ब्याज देना पड़ता है |
और भी ढेर सारे फैक्टर एक्सटर्नल फेलियर कोस्ट आते है
इन कोस्ट एलेमेंट्स का टोटल कोस्ट ऑफ़ क्वालिटी में कितना हिस्सेदारी होता है ? एक जनरल कंपनी में इनका कॉन्ट्रिब्यूशन निचे दिखाए गए ग्राफ के अनुसार होता है....
What is COPQ |
कोस्ट ऑफ़ क्वालिटी हमें कम क्यों करना चाहए इसके क्या फायदे है ? निम्नलिखित है .......
धन्यवाद दोस्तों ये जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट करके हमें जरुर बताये और आप आगे किस टॉपिक पे जानकारी चाहते है वो भी हमें जरुर बताये|
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